अरावली सिर्फ पहाड़ नहीं, भारत की जीवन रेखा है : दिग्विजय ने अरावली पर्वतमाला संकट को लेकर जताई गहरी चिंता
- By Gaurav --
- Thursday, 25 Dec, 2025
Aravalli is not just a mountain, it is the lifeline of India:
जननायक जनता पार्टी के युवा प्रदेश अध्यक्ष दिग्विजय सिंह चौटाला ने अरावली पर्वतमाला को देश के पर्यावरणीय भविष्य से जुड़ा अत्यंत महत्वपूर्ण विषय बताया है। उन्होंने कहा कि अरावली केवल पत्थरों और पहाड़ियों की श्रृंखला नहीं, बल्कि उत्तर भारत विशेषकर हरियाणा, राजस्थान और दिल्ली-एनसीआर के पर्यावरणीय संतुलन, जल सुरक्षा और करोड़ों लोगों के जीवन की ऐतिहासिक जीवन रेखा है। दिग्विजय ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा पर्यावरण मंत्रालय की उस सिफारिश को स्वीकार किए जाने पर गहरी चिंता जताई, जिसमें 100 मीटर से कम ऊंचाई वाली पहाड़ियों को अरावली का हिस्सा न मानने की बात कही गई है। उन्होंने कहा कि इस फैसले का सीधा अर्थ यह है कि अरावली की लगभग 91 प्रतिशत छोटी पहाड़ी श्रृंखलाएं अरावली सिर्फ पहाड़ नहीं, भारत की जीवन रेखा है और कटक, जिनकी ऊंचाई 30 से 80 मीटर के बीच है और जो भूजल रिचार्ज, मिट्टी संरक्षण और मरुस्थलीकरण रोकने में सबसे अहम भूमिका निभाती है, अब खनन माफिया और अनियंत्रित निर्माण के लिए पूरी तरह खुल सकती है।
दिग्विजय चौटाला ने कहा कि अरावली भारत की सबसे पुरानी पर्वतमाला है, जिसकी आयु लगभग 1.8 अरब वर्ष से भी अधिक मानी जाती है और जो हिमालय से भी कहीं अधिक प्राचीन है। आज यह थार मरुस्थल और उपजाऊ गंगा-यमुना के मैदानों के बीच एक प्राकृतिक हरित दीवार बनकर खड़ी है। दिग्विजय चौटाला ने कहा कि पिछले दो अरब वर्षों से अरावली ने पश्चिमी हवाओं, वर्षा वितरण और मिट्टी के कटाव को नियंत्रित कर उत्तर भारत को रेगिस्तान बनने से बचाया है।
उन्होंने चेतावनी दी कि यदि अरावली की यह प्राकृतिक ढाल कमजोर हुई तो पश्चिम से उड़ने वाली धूल और रेत सीधे दिल्ली-एनसीआर तक पहुंचेगी, जिससे पहले से गंभीर वायु प्रदूषण और अधिक जानलेवा हो जाएगा। खनन और पत्थर क्रशिंग से निकलने वाली पीएम10 और महीन धूल दिल्ली-एनसीआर की हवा को और जहरीला बनाएगी। उन्होंने बताया कि जिन क्षेत्रों में पहले ही खनन हुआ है, वहां भूजल स्तर 10 मीटर से गिरकर 100–150 मीटर तक चला गया है और हरियाणा के महेंद्रगढ़ जैसे इलाकों में कई कुएं पूरी तरह सूख चुके है।
दिग्विजय सिंह चौटाला ने कहा कि अरावली पर्वतमाला चंबल, साबरमती और लूणी जैसी महत्वपूर्ण नदियों को जीवन देती है और राजस्थान के 32 प्रमुख पेयजल जलाशयों की आधारशिला है। अरावली की चट्टानें और दरारें वर्षा जल को सोखकर उसे जमीन के भीतर पहुंचाती हैं, जिससे भूजल का पुनर्भरण होता है। पहाड़ियों और जंगलों के कटने से न केवल पानी का संकट गहराएगा, बल्कि स्थानीय तापमान में 2 से 3 डिग्री सेल्सियस तक वृद्धि की आशंका है, जो जलवायु परिवर्तन को और तेज करेगी। उन्होंने वन्यजीवों पर पड़ने वाले असर को भी गंभीर बताया और कहा कि अरावली तेंदुए, लकड़बग्घे, हाइना, हनी बैजर और सैकड़ों पक्षी प्रजातियों का प्राकृतिक आवास है। छोटी-छोटी पहाड़ियों के कटने से वन्यजीव गलियारे टूट जाएंगे, जिससे जानवर छोटे-छोटे जंगलों में फंसकर मानव-वन्यजीव संघर्ष और विलुप्ति के खतरे का सामना करेंगे।
दिग्विजय सिंह चौटाला ने केंद्र और राज्य सरकारों से पुरजोर मांग की है कि अरावली की वैज्ञानिक, ऐतिहासिक और पारिस्थितिकी परिभाषा से कोई छेड़छाड़ न की जाए, 100 मीटर से कम ऊंचाई वाली पहाड़ियों को भी अरावली का अभिन्न हिस्सा मानते हुए उन्हें पूर्ण संवैधानिक और पर्यावरणीय संरक्षण दिया जाए तथा खनन माफिया के हित में लिए जा रहे किसी भी निर्णय पर तुरंत रोक लगाकर पुनर्विचार किया जाए। उन्होंने कहा कि अरावली को बचाना सिर्फ पर्यावरण बचाने का सवाल नहीं है, यह पानी, हवा, खेती, स्वास्थ्य और आने वाली पीढ़ियों के सुरक्षित भविष्य का सवाल है। अगर आज हमने अरावली को नहीं बचाया तो आने वाला कल हमें कभी माफ नहीं करेगा।